सुविधाओं का लाभ लेने मेंशर्म नही आती है, लेकिन उन्हे अपना मानने में शर्म आती है।

सूक्तियां
संजीव खुदशाह
    1.    डॉ. अम्बेडकर द्वारा प्रदत्त शिक्षा, समानता तथा आरक्षण जैसी सुविधाओं का लाभ उठाने में हमे कोई शर्म नही आती है। लेकिन उन्हे अपना मानने में हमे शर्म आती है, क्या ये सही है?
    2.    इस समाज को नुकसान उन पढ़े-लिखे लोगों ने ज्यादा पहुचाया, जिन्होने डा. अम्बेडकर द्वारा प्रदत्त सुविधाओं का लाभ लेकर उचाई का मकाम हासिल किया किन्तु उसी समाज तथा बाबा साहेब को तिरस्कृत करने में कोई कसर नही छोड़ी। ऐसे लोगो कि सामजिक, सार्वजनिक भर्त्सना की जानी चाहिए।
    3.    जिस समाज का व्यक्ति प्रतिमाह एक दिन का वेतन समाज के लिए खर्च करता है। उस समाज को तरक्की करने से काई रोक नही सकता।
    4.    जिस समाज के बुजूर्ग प्रतिवर्ष एक माह के पेंशन का पचास प्रतिशत समाज के लिए देते है। वह समाज शिखर पर होता है।
    5.    ऐसी संस्कृति जिसने हमें हजारों सालों से गुलाम बनाये रखा, वा हमारी संस्कृति नही हो सकती ।
    सौजन्य से
    दलित मुव्हमेन्ट ऐसो‍स‍ियेशन

    न्याय की कसौटी पर साहित्यीक चोरी

    त्रैमासिक पत्रिका, अपेक्षा, नई दिल्ली,    अंक अप्रैल- जून २००८

    न्याय की कसौटी पर साहित्यीक चोरी ..........!

    *   संजीव खुदशाह

    मुझे यह जानकारी देते हुए बेहद दुख हो रहा है कि हमारे ही बीच के ही तथाकथित वरिष्ठ लेखक श्री ओमप्रकाश वाल्मीकि ने अपनी नई किताब सफाई देवता में ज्यादातर तथ्य एवं स्थापनांए मेरी मौलिक किताब ''सफाई कामगार समुदाय`` से तोड़-मरोड़ कर अपने नाम से पेश की गयी है।

    ज्ञातव्य हो कि इस किताब को लिखने में मुझे कड़ी मेहनत करनी पड़ी, जिसमें कई पुस्तको का अध्ययन, विभिन्न स्थानों पर भ्रमण, साक्षात्कार शामिल है। इस कार्य में मुझे लगभग तीन से चार वर्ष लगे। यह किताब राधाकृष्ण प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित हुई थी। इस किताब को वृहद रूप से सराहा गया था। छत्तीसगढ़ में इसे साहित्य का तेजस्वनी सम्मान भी प्राप्त हुआ। साथ ही इस किताब को अमेरिका की वाशिगटन यूनिर्वसिटी लायब्रेरी में ''भारत में भंगी समुदाय अध्ययन`` हेतु शामिल किया गया है। पूर्व में इस विषय पर १९६९, १९७६ तथा १९९४ में तीन अन्य अंग्रेजी किताबों को शामिल किया गया था। २००५ में शामिल हुई यह इस विषय पर पहली हिन्दी भाषा की किताब है। यह समस्त दलितों के साथ हिन्दी भाषा-भाषियों के लिए भी गर्व की बात है। इस जानकारी को यूनीर्वसिटी अपनी आधकारिक वेबसाईट पर प्रकाशित किया है।

    मासिक पत्रिका  ''प्रकाशन समाचार`` से मुझे जानकारी मिली की श्री ओमप्रकाश वाल्मीकि की नई किताब सफाई देवता प्रकाशित हुई है। मैने सर्व-प्रथम उसी दिन शाम को श्री वाल्मीकि से फोन पर बात की तथा नई किताब के प्रकाशन पर उन्हे बधाई दी। इसके बाद मैंने प्रकाशक के सचिव को फोन पर इस किताब को भेजने हेतु कहा और यह किताब मुझे मिल गई। मुझे बेहद प्रसन्नता हुई की इस विषय पर एक और किताब का प्रकाशन हुआ है तथा दलित साहित्य और अधिक समृघ्द हो रहा है, लेकिन किताब पढ़ते ही मुझे लगा कि कई तथ्य मेरे किताब से लिये गये है तथा उनका उचित संदर्भ भी नही दिया गया है। मुझे लगा की ऐसा संपादकीय त्रुटिवश भी हो सकता है लेकिन कई पृष्ठो में ऐसी ही स्थिति थी। मुझसे रहा नही गया, दूसरे दिन मैने श्री कवंल भारती जी से इस बाबत् चर्चा की तथा उन्हे उक्त अंशो की फोटो कापी भेजी। और भी कई लेखको को मैने अंश की फोटो कापी दिखायी । तत्पश्चात् मैने एक औपचारिक पत्र दिनांक २९.२.०८ को स्पीड पोस्ट से श्री वाल्मीकिजी को भेजा। उन्होने मुझे दिनांक ३.३.०८ को रात्रि ९.१७ बजे फोन किया तथा यह माना की कुछ स्थानों पर मेरी किताब का सन्दर्भ देने में भूल हो गई है, जिसे अगले संस्करण में सुधार लिया जायेगा। मैंने उन्हे लिखित मे जवाब देने हेतु निवेदन किया। किन्तु आज दिनांक तक उनका न तो कोई खण्डन आया, न ही कोई लिखित में जवाब मुझे मिला।  इसके बाद पुन: दिनांक ८.३.०८ रात्रि ८.३४ बजे उनका फोन आया। उन्होने करीब दस से पन्द्रह मिनट तक मुझसे बात की उनका कहना था कि ''मै तुम्हे अपना छोटा भाई मानता हूॅं, तुम कहो तो अपनी अगली किताब तुम्हारे नाम कर दू। इस लाइन (लेखकीय लाइन से आशय है) में ऐसा तो होता ही रहता है। एक जगह तो तुम्हारा नाम दिया है न मैने। तुम्हे शांत रहना चाहिए।``

    मैने इस विषय पर लिखने से पहले बहुत सोच-विचार किया तथा वरिष्ठ लेखकों तथा शोधकर्ताओं से विचार विमर्श भी किया। बड़ी मानसिक उलझनो एवं अंर्तद्वंद से मुझे गुजरना पड़ा। क्योकि मेरे मन मे उनके प्रति आदर ही था, जो मुझे उनके खिलाफ लिखने से रोके रहा । किन्तु मै ऐसा मानता हूॅं, कि समाज की बुराई के खिलाफ कलम उठाने पर ही मुझे समाज में एक स्थान मिला है। इस स्थान का हकदार मै बना रहूं इसके लिए जरूरी है कि समाज की बुराईयों से लड़ता रहूॅ, बिना किसी का चेहरा या कद देखे (आशय पक्षपात से है।)। चाहे इसके लिए मै समाज मे अकेला ही क्यों न कर दिया जाउ। क्योंकि इस प्रवृत्ति को भी मैं एक समाजिक बुराई मानता हूॅ। इसके बाद मैने तय किया कि मुझे मुखर होना ही पड़ेगा, अन्यथा कई मौलिक कृतियां ऐसी ही कुटिलताओं के नीचे दफ्न होकर रह जायेगी।

    लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि ने अपनी पूरी किताब में कई जगह बिना ''सफाई कामगार समुदाय`` किताब का संदर्भ देते हुए अंश अथवा अंश को तोड़ मरोड़ कर पेश किया है। यह उनकी विद्वता और मौलिकता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है।

    पृष्ठ क्रमांक-५० ( सफाई देवता ) में वे लिखते हैं-

    ''डॉ. विमल कीर्ति की भी इसी तरह की मान्यता है कि सुपच सुदर्शन ऋषि और कोई नही सुदर्शन नाम के बौध्द श्रमण थे। नागपुर के आसपास अनेक लोग (भंगी समाज)`` सुदर्शन को अपना गुरू मानते है। पालि भाषा के अनेक ग्रन्थों में सुदर्शन नामक एक बौध्द भिक्षु का जिक्र आता है।``

    यह तथ्य डॉ विमल कीर्ति से मेरी बातचीत के दौरान सामने आया था जिसे मैने अपनी किताब ''सफाई कामगार समुदाय`` में पृ. क्र. ७६ में लिया था।

    ''४. इसी सन्दर्भ मंे डा. विमल कीर्ति, जो नागपुर विश्वविद्यालय में पालि भाषा के प्रमुख है, ने अपनी मुलाकात के दौरान बताया कि सुपक्ष सुदर्शन ऋषि कोई और नही बल्कि बौध्द धर्म के श्रमण श्री सुदर्शन (पाली ग्रन्थों में श्रमण सुदर्शन नामक एक बौध्द भिक्षु का विवरण मिलता है।) रहे होगें। जिन्हे पिछड़ी जाति के लोग आज अपना गुरू मानते है। इससे इस सम्भावना को बल मिलता है कि समस्त पिछड़ी जाति बौध्द नही होगी। इसके विरोध के कारण ही उन्हे नीच करार दिया गया होगा।``

    इसी प्रकार पृष्ठ क्रमांक ५७ ( सफाई देवता ) में १९१० की जनगणना के कमिश्नर की रिपोर्ट में अछूतों के लक्षण बताए गए है।

    ''१. जो ब्राम्हणो की प्रधानता नही मानते।

    २. जो किसी ब्राम्हण अथवा अन्य किसी माने हुए गुरू से मन्त्र नही लेते

    ३. जो वेदों को प्रमाण नही मानते

    ४. जो हिन्दू देवी-देवताओं को नही पूजते

    ५. जो हिन्दू मन्दिरों में नही जा सकते है।``

    इन पर करीब १२ लक्षणो पर गहन विवेचना मेरी किताब में प्रस्तुत की गई है जिसके अंश तोड-मरोड़ कर यहां प्रस्तुत किये गये है। ठीक इसी प्रकार पृ.क्र. ७९( सफाई देवता) में लिखा गया है

    ''छिटकी-बुंदकी के आधार पर इनकी शादी-विवाह तय होते है। छिटकी-बुदकी में इनके मूल निवास और देवी-देवताओं की जानकारी मिलती है। छिटकी-बुंदकी न मिलने से रिश्ते नही बनते। इनमें 'जसगीत` गाने की एक विशिष्ट शैली पाई जाती है।``

    किताब ''सफाई कामगार समुदाय`` (देखे पृ.क्र.-९५) के पृ.क्र. ११० में छिटकी बुंदकी पर पूरा का पूरा एक उपअध्याय है उसी में से उक्त अंश को तोड़-मरोड़ कर उदधृत किया गया है। छिटकी बुंदकी पर मेरे व्दारा विवेचना की गई है तथा निष्कर्ष निकाले है, उसी निष्कर्ष को उपर लिख दिया गया है। इसी प्रकार नाभाजी का जिक्र पृष्ठ क्रमांक १३३ ( सफाई देवता ) में दिया गया है, जिसका संदर्भ पहली बार किताब ''सफाई कामगार समुदाय`` में आया था।

    ''सफाई कामगार समुदाय`` पुस्तक के पृष्ठ क्रमांक १३७ में विभिन्न राज्यों के सफाई कामगारों के जातियों के नाम दिये गये थे। इसी सूची को थोड़ा बहुत संशोधित करते हुए श्री ओमप्रकाश वाल्मीकि व्दारा अपनी किताब ( सफाई देवता ) पृष्ठ क्रमांक १४७ में प्रस्तुत किया गया है। उनका यह कृत्य साहित्यिक अथवा प्राकृतिक न्याय की कसौटी पर एक ओछा कार्य है। उनसे अपेक्षा थी कि वे  बताते कि ये सारे तथ्य उन्होने कहां से उठाएं है। शायद इससे उनका मान और बढ़ जाता। वे यह भी बताते कि डॉ. विमल कीर्ति से सुदर्शन ऋ़षि के बौध्द श्रमण होने का तथ्य उन्होने कहां से लिया है। शायद वे जगह-जगह पुस्तक ''सफाई कामगार समुदाय`` का जिक्र करने में शर्मिदगी महसूस कर रहे होंगे। अथवा वे फासीवादियों की तरह दूसरों की उपलब्धियों को चट कर जाना चाहते है। इस प्रकार कई जगह पर मेरी किताब से निकाले निष्कर्ष को बहुत ही आसानी से इस किताब में लिया गया है। शायद वे किताब के शुरू में आयी कापी-राईट की चेतावनी को पढ़ना भूल गये।

    पूरे किताब में श्री ओम प्रकाश वाल्मीकि व्दारा मेरी अथवा किताब ''सफाई कामगार समुदाय`` का जिक्र किये जाने से बचने की कोशिश स्पष्ट नजर आती है। केवल एक जगह पृष्ठ क्रमांक ७६ ( सफाई देवता ) में संजीव खुदशाह का जिक्र किया गया है, वह भी एक साक्षात्कार की रिर्पोटिंग के सम्बन्ध में। वैसे तो पूरी की पूरी किताब पुस्तक ''सफाई कामगार समुदाय`` की छाया से उबर नही पाई है।

    एक वरिष्ठ साहित्यकार व्दारा ऐसा किया जाना उनके साहित्यक बौने पन की निशानी है। आज जब दलित आंदोलन तेजी से आगे बढ़ रहा है, ऐसे वक्त में श्रेय लेने की होड़ में कुछ लोग ऐसा कृत्य भी करेंगें यह अकल्पनीय था। बेहतर होता प्रतियोगिता एवं ईर्ष्या की भावना से उपर उठकर वे एक मौलिक कृति को अंजाम देते, जो सामाज को रास्ता दिखाने के काम आती।

     

     

     

    जाति प्रमाण पत्र मे आने वाली कठिनाईयो के पीछे कुछ लोगों कि चाल है।

    दलित मुव्हमेन्ट ऐसोसियेशन
    (सामाजिक अधिकारों के लिए प्रतिबध्द)
    शासन व्दारा मान्यता प्राप्त
    पंजीकृत कार्यालय:- 687 दोन्देखुर्द एच.बी.कालोनी, रायपुर (छ.ग.) पिन-493111
    पत्र क्रमांक................ दिनांक 17/4/2011                                              पंजीयन क्रमांक -3220
    प्रेस विज्ञप्ति
    वार्षिक सम्मेलन तथा डॉ अम्बेडकर जयंती समारोह
    विगत १४ अप्रैल २०११ को दलित मुव्हमेंट ऐसोसियेशन के तत्वाधान में डोमार-हेला महासम्मेलन तथा डॉं अम्बेडकर जयंती समारोह का आयोजन गॉस मेमोरियल सेन्टर जय स्तंभ चौक रायपुर में किया गया। इस कार्यक्रम में दिल्ली से आये सफाई कर्मचारी आंदोलन के नेशनल कनवेनर श्री बैजवाड़ा विल्सन, पुणे से आये मानुष्कि के प्रोग्राम डायरेक्टर श्री प्रियदर्शी तैलंग, रायपुर के दैनिक देशबंधुग्रुप के प्रधान संपादक श्री ललित सुरजन, रायपुर के ही दलित लेखक श्री संजीव खुदशाह तथा सागर से आये समाजिक कार्यकर्ता श्री शिवरतन हेला भारती ने शिरकत की। कुल तीन सत्र में विभाजित यह कार्यक्रम पूरे एक दिन का था। सबसे पहले कैलाश खरे जो स्टेट कनवेनर है ने इस कार्यक्रम तथा एसोसियेशन का परिचय दिया तथा यह बताया कि इस ऐसोसियेशन का गुगल ग्रुप देश के लोकप्रिय ग्रुप एवं ब्लग्स में शुमार है। प्रथम सत्र के वक्ता के रूप में श्री बैजवाड़ा विल्सन ने कहा कि भारत शासन ने हर जाति हर विभाग को आधुनिक बनाने की कोशिश की। किन्तु सफाई के क्षेत्र में कोई अनुसंधान नही कराया क्योकि उनको मालूम है की ऐसी सैकड़ो जातियां है जो मैला सिर पर ढोकर देश को स्वस्थ रख सकती है। आज शुष्कशौचालय निषेध अधिनियम केवल कागजों तक सीमित है। श्री ललित सुरजन ने कहा यह सही ही की अभी समाज में बदलाव पूरी तरह नही आया है किन्तु हम सब इस कार्यक्रम में शामिल है ये इस बात का सूबूत है कि यह बदलाव तेजी से आ रहा है। पुणे से आये श्री प्रियदर्शी तैलंग ने बताया कि यह प्रयास बहुत ही अच्छा है। छत्तीसगढ़ में डोमार-हेला समाज बहुत बड़ी संख्या में निवास करता है किन्तु अब तक यह समाज एक जुट नही हो पाया था। एकता सबसे बड़ी ताकत होती है। इस मामले में दलित मुव्हमेंट ऐसोसियेशन का प्रयास सराहनिय है और मै चाहूगां की ऐसे कार्यक्रम होते रहने चाहिए। उन्होने नागपूर या पूणे में इस समाज के चुने हुये सदस्यों का तीन दिवसीय प्रशिक्षण तथा भ्रमण शिविर आयोजित करने की घोषणा की जिसका सारा खर्च माणुष्कि वहन करेगी। संजीव खुदशाह ने अपने वक्तव्य में कहा की इस कार्यक्रम को आयोजित करने में दलित मुव्हमेंट ऐसोसियेशन के सदस्यो को बहुत पापड़ बेलने पड़े। आज यह समाज डॉ अम्बेडकर व्दारा प्रदत्त सभी सुविधाऐ शिक्षा, समानता, आरक्षण, ऐट्रोसिटी एक्ट आदि का भरपूर उपयोग करता है किन्तु उसी बाबा साहेब को अपनाने में कतराता है। यह एक बेईमानी जैसा है आखिर यह समाज कब तक अपने शोषको तथा उध्दारको में फर्क कर पायेगा। उन्होने आगे कहा यदि समाज के ऐसे लोग जो डॉ अंबेडकर को नही मानते है। उनके द्वारा प्रदत्त सुविधाये लेना बंद कर दे।
    श्री शिवरतन भारती ने अपने उदबोधन में कहा की संजीव खुदशाह कि प्रसिध्द किताब 'सफाई कामगार समुदाय` हमने पढ़ी और सैकड़ो लोगो को पढ़ाई। उनकी किताब यदि कोई व्यक्ति पढ़ले तो अलग से उसे कुछ समझाने कि आवश्यकता ही नही पड़ती सब कुछ उसमें मौजूद है जो इस समाज का व्यक्ति जानना चाहता है। वे एक लोकप्रिय लेखक है उनके शहर आकर उनसे मिलकर बेहद खुशी एवं गर्व की अनुभूति हुई। ऐसोसियेशन के प्रतिनीधि श्री मोतिलाल धर्मकार ने कहा आज इस समाज को यदि किसी ने सबसे ज्यादा छला है तो वह है इसी समाज के तथा कथित नेता तथा आरक्षण जैसी सुविधाओं का लाभ लेकर उचे पदो पर बैठे वो लोग जो इस समाज को पलट कर नही देखते न ही बाबा साहेब को मानते है उनकी एक सूची बनाकर उनकी सार्वजनिक भर्त्सना की जानी चाहिए। आखिर जाति छुपा कर कितने दिन रहा जा सकता है। सागर से आये श्री शंकर गंगापारी जी ने अपने उदबोधन में कहा की हमारा समाज एक जुट नही हो पा रहा है, सुदर्शन, वाल्मीकि, नवल, गोगापीर जैसे नामों को पकड़कर अलग-अलग बटां हुआ है आज जरूरत है कि बाबासाहेब जिनके कारण हमे सारी सुविधाये मिल रही है उन्ही के नाम पर हम एक जुट हो जाऐं। उन्होने कहा आज दलित मुव्हमेंट ऐसोसियेशन के बुलावे पर हम यहां आये सुबह रायपुर पहुच कर दैनिक हरीभूमि अखबार में एक बहुत अच्छा लेख बाबा साहेब और भंगी जातियों पर पढ़ा, हमें आश्चर्य और खुशी का ठिकाना नही रहा की यह लेखं संजीव खुदशाह जी का ही था। ये बहुत खुशी कि बात है हमारे बीच ऐसे लेखक है जिनके लेख को ऐसा महत्वपूर्ण स्थान मिलता है। पूर्व पार्षद कंधीलाल कुण्डे ने कहा हमारे समाज का व्यक्ति समाज के लिए एक रूपये खर्च करने में संकोच करता है इस समाज को संगठित करने कि आवश्यकता है और संगठन तभी बन सकता जब संगठन के पास वित्तीय ताकत है हो, इसलिए मै आग्रह करता हू कि हर वेतन भोगी प्रतिमाह एक दिन का वेतन तथा पेशनर वर्ष में १५ दिन का पेशन समाज के लिए खर्च करे। तभी यह समाज संगठीत होगा और तरक्की करेगा।  इस सत्र में रायपुर की श्रीमति किरन खरे, चिरमीरी से आई इसी समाज की एल्डरमेन नगरनिगम श्रीमति गौरी हथगेन ने भी प्रभावपूर्ण वक्तव्य दिया। इस सत्र के समापन कि घोषणा डॉ अनुराग मेश्राम ने की तथा दोपहर के भोजन हेतु सभी को आमंत्रित किया।
    दूसरे सत्र में छत्तीसगढ़ के समस्त जिलों से आये बाल प्रतिभाओं को सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप बाबा साहेब का एक फ्रेम किया हुआ फोटोग्राफ तथा प्रशस्ति पत्र दिया गया। साथ ही ऐसे बच्चे जो अन्य जिलो से आये थे उन्हे ऐसोसियेशन द़्वारा आने जाने का किराया भी दिया गया।

    तीसरा सत्र समाज की समस्याओं तथा जाति प्रमाण पत्र बनवाने में आने वाली कठिनाईयों पर केन्द्रित था। इस सत्र के मुख्य वक्ता समाज के सभी विद्वतजन उपस्थित थे, सभी ने कहा कि जाति प्रमाण पत्र मे आने वाली कठिनाईयो के पीछे कुछ लोगों कि चाल है कि हम लोगो को आरक्षण का लाभ नही मिल पाये इसमें सरकार के नुमाईदो की मिली भगत है। आज राज्य में सत्यापन समिति के पास लगभग ३००० ऐसे लोगो का प्रकरण लंबित है जो फर्जी जाति प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी कर रहे, उनके खिलाफ सरकार कुछ नही कर रही है किन्तु हम जैसे जरूरतमंद लोगो को तरह तरह के कानून लाद कर आरक्षण से दूर कर रही है।  

    सत्र के अंत में एक समाजिक समस्याओं के उपचार हेतु ऐजेण्डे का अनुमोदन किया गया तथा एक समाज भवन रायपुर में निर्माण किये जाने पर सहमती जताई गई। तथा यह भी तय किया गया कि एक प्रतिनीधि मंडल अपनी समस्याओ को लेकर मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन सौपेगा। इस कार्यक्रम में लगभग सभी जिलो से आये २०० लोगा शमिल हुऐ। इसे सफल बनाने में इस दलित मुव्हमेंन्ट ऐसोसियेशन के स्टेट कनवेनर डिस्ट्रीक्ट कनवेनर तथा समाजिक सदस्यों ने बड़ा सहयोग दिया जिनमें शामिल है कैलाश खरे, हरिश कुण्डे, ललित कुण्डे, तथा सचिन खुदशाह।

    भवदीय

    सचिन कुमार
    स्टेट कनवेनर
    दलित मुव्हमेंट ऐसोसियेशन
    मो 09907714746