The Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens (Amendment) Bill, 2019
DMAindiaOnline| Episode No159 Personality of The Week Advocat Clifton D'Rozario Karnataka High Court
आवाज की दुनिया के बादशाह रहे हैं अमीन सयानी
बिनाका गीत माला
के अमीन सयानी
संजीव खुदशाह
आवाज की दुनिया के बादशाह रहे हैं अमिन
सयानी। हीरो हीरोइन गायक कलाकारों के पीछे तो हमेशा लोग पागल रहे हैं लेकिन ऐसा
पहली बार हुआ जब किसी एनाउंसर के पीछे लोग इस तरह दीवाने थे। इनका क्रेज किसी
सुपरस्टार से कम कभी नहीं रहा। वे भारतीय उपमहाद्वीप के अनाउंसरों के आदर्श रहे हैं।
और लगभग हर दूसरा एनाआंसर उनकी तरह बोलना चाहता है। 50, 60 और
70 के दशक में पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में यह माहौल था कि हर
बुधवार को रात 8:00 बजे गलियां और सड़के सुनसान हो जाया करती
थी। लोग ट्रांजिस्टर, रेडियो से चिपक जाते । आधे घंटे का यह
प्रोग्राम लोगों को बहुत आकर्षित करता था। खास तौर पर अमीन सयानी की डायलॉग
डिलीवरी का जो अंदाज था वह काबिले तारीफ था। वो न ही कठिन हिंदी में था न ही कठिन
उर्दू में खालीस हिंदुस्तानी भाषा में बोलचाल की तर्ज में वे अपनी बात को कहते थे
और यही बात लोगों को पसंद आती थी। बिनाका गीत माला एक काउंटडाउन सो था जिसमें
फिल्मी गीतों की लोकप्रियता के आधार पर प्रति सप्ताह करीब 16 गीत सुनाए जाते थे। आधे घंटे की इस शो में गीत पूरे नहीं बजते थे। लेकिन
लोगों को यह जानने की उत्सुकता रहती की कौन सा गीत किस गीत के आगे है या पीछे है।
सरताज गीत कौन सा है ? कौन सा गीत किस पायदान में है ? इसी प्रकार साल भर के सरताज गीत दिसंबंर के आखरी
बुधवार को बजते जिसमें एक गीत सभी गीतो का सरताज बनता।
अमित सयानी बताते हैं कि जब उन्होंने बतौर
एनाउंसर अपनी करियर की शुरुआत करनी चाही तो ऑल इंडिया रेडियो ने उन्हें रिजेक्ट कर
दिया और यह कहा कि योर वॉइस इस नॉट सूटेबल फॉर अस।
हर गायक कलाकार अभिनेताओं की यह चाहत होती
कि उनके गीत बिनाका गीत माला में बजे। बिनाका गीत माला में गीत बजने का मतलब होता
था की फिल्म सुपरहिट होना तय है । अमीन सयानी इस कार्यक्रम में न केवल गीतों को
सुनाते थे बल्कि उस गीत की पृष्ठभूमि के बारे में भी बताते थे । जो की बहुत रोचक
हुआ करता था। लगभग उन्होंने तमाम फिल्मी हस्तियों से अपने इस काउंटडाउन शो बिनाका
गीत माला में बातचीत की और उसका एक आर्काइव भी अपने पास रखा। जिसे उन्होंने
गीतमाला की छांव में के अपने एपिसोड में प्रसारित किया। उन्होंने कुछ फिल्मों में
भी बतौर एनाउंसर अभिनय किया जैसे भूत बंगला, तीन देवियां, बॉक्सर
और कत्ल।
पिछले कुछ दिनों से वे काफी बीमार चल रहे
थे। लेकिन सक्रियता उनकी आखिरी दिनों तक बनी रही । आज के तमाम रेडियो जॉकी के वे
आईकान थे। आज वे हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी आवाज आज भी जैसे कि हमारे कानों में
गूंज रही है। जिन्होंने उनका प्रोग्राम रेडियो पर सुना है वह कभी उन्हें भूल नहीं
सकेंगे। उनकी यादें हमेशा उनके जहन में बनी रहेगी ।
Sant Ravidas's thoughts are relevant even today
मन चंगा तो कठौती में गंगा- संत कवि रविदास
संजीव खुदशाह
भारतीय समाज मे संत रविदास का स्थान विशेष है वे भक्ति काल के कवि होने के बावजूद उनके पदो में प्रगतिशीलता और समता छाप स्पष्ट झलकती है। उनके जन्म स्थान दिनांक उम्र आदि के बारे विद्वानों में
विरोधा भाष रहा है। किंतु ज्यादातर विद्वान मानते है कि सन 1398 ईसा में उनका जन्म हुआ था तथा उनके दोहे से ज्ञात होता है कि वे एक दलित समुदाय से ताल्लुक रखते है।जाति भी ओछी, करम भी ओछा, ओछा कसब हमारा।
नीच से प्रभु ऊंच कियो है, कह रविरास चमारा।।
-- रैदास जी की बानी
वे एक मुख्यु धारा के संत कवि थे जिनका सीधा समाज से सरोकार था किंतु साहित्यिक मठाधीश उन्हे निर्गुण धारा के कवियों में वर्गीकृत करते है। शायद इसलिये की वे समकालीन कवियों रसखान, सूरदास, तुलसीदास की भांती सिर्फ भक्ति में ही डूबकर रचनाएं नही करते थे। वे कबीर की तरह समाज की रूढि़यों पर भी चोट करते रहे। वे संत कवि होने के बावजूद समाज को मार्गदर्शन देने का काम करते रहे। ऐसा कहा जाता है कि संत रविदास बनारस के निवासी थे लेकिन जीते जी उनकी ख्याति पूरे भारत में थी। उनके शिष्य और अनुयायी पूरे भारत में मिलते है चाहे पंजाब हो, हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्य प्रदेश या दक्षिण में महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश । ऐतिहासिक ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि संत रविदास के जीवन काल के दौरान
एक समय ऐसा था जब संत बनने के लिए किसी को गुरू बनाना जरूरी था। चित्तौड़ की रानी मीरा को तत्कालीन संतो ने शिष्या बनाने से इनकार कर दिया क्योकि वे एक स्त्री थी। वह भी राज परिवार की़। धार्मिक परंपरा के अ़नुसाऱ ये उचित नही माना जाता था। लेकिन संत रविदास ने इस रूढ़ी को तोड़ते हुए मीरा के अनुनय विनय को स्वीकार करते हुये अपनी शिष्या बनाया। मीरा के पदों में रैयदास का जिक्र कई स्थानों में मिलता है। रविदास की रचनाएं- नागरी प्रचारिणी सभा की खोज रिर्पोट के अनुसार उनकी रचनाएं विभिन्न हस्तालिखित ग्रन्थों के रूप मे मिली है ---1. रैदास की बानी, 2. रैदास जी की साखी, 3.रैदास के पद, 4.प्रहलाद लीला। ग़ौरतलब है कि सिक्खो के पवित्र धर्म ग्रन्थ ‘’गुरूग्रंथ साहेब’’ में संत रविदास के 40 पद संग्रहीत है।
रैदास की वाणी मानव भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक हित की कामना तथा मानव प्रेम से ओत-प्रोत होती थी। इसलिए उसका श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था। उनके भजनों तथा उपदेशों से लोगों को ऐसी शिक्षा मिलती थी जिससे उनकी शंकाओं का संतोषजनक समाधान हो जाता था और लोग स्वत: उनके अनुयायी बन जाते थे।
संत रविदास जाति भेद, ऊंच-नीच, रंग-भेद, लिंग-भेद, पितृसत्ता को सारहीन एवं निरर्थक बताते थे। वे परस्पार मिलजुलकर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश देते थे।
वर्णाश्राम अभिमान तजि, पद रज बंदहिजासु की।
सन्देशह-ग्रन्थि खण्ड न-निपन, बानि विमुल रैदास की।।
इस पद में वे कहते है की मनुष्य मनुष्य से तब तक नही जुड पायेगा जब तक की जाति रहेगी।
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।
वे हिन्दू मुस्लिम एकता की बात करते थे जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है
रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।
तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि।।
हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।
दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।।
उनके जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से समय तथा वचन के पालन सम्बन्धी उनके गुणों का पता चलता है। एक बार एक पर्व के अवसर पर पड़ोस के लोग गंगा-स्नान के लिए जा रहे थे। रैदास के शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने का आग्रह किया तो वे बोले, गंगा-स्नान के लिए मैं अवश्य चलता किन्तु एक व्यक्ति को जूते बनाकर आज ही देने का मैंने वचन दे रखा है। यदि मैं उसे आज जूते नहीं दे सका तो वचन भंग होगा। गंगा स्नान के लिए जाने पर मन यहाँ लगा रहेगा तो पुण्य कैसे प्राप्त होगा ? मन जो काम करने के लिए अन्त:करण से तैयार हो वही काम करना उचित है। मन सही है तो इसे कठौते के जल में ही गंगास्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है। इस प्रकार उनके मुख से प्रसिध्द दोहे का जन्म् हुआ ।
- मन चंगा तो कठौती* में गंगा।
*कठौती- चमड़ा साफ करने का बर्तन।
आज भी प्रासंगिक है संत रविदास के विचार Publish on Navbharat 30 Jan 2018
Saint Valentine's Day giving the message of love
प्रेम का संदेश देता संत वैलेंटाइन दिवस
संजीव खुदशाह
सदियों
से प्रेम और उसकी भावनाओं को धर्म और संस्कृति के ठेकेदारों ने अपनी पैरो की जूती
समझा है तथा प्रेम के दीवानों पर सैंकड़ो सितम ढाये है। बावजूद इसके प्रेम के नाम
पर अपने आपको न्यौछावर कर देने वाले संत वेलेन्टाईन के बलिदान दिवस को पूरी
दुनिया बडी सिदृत मुहब्बत का त्यौहार मनाती है। आज विश्व की युवा पीढी और हर वह
व्यक्ति जो अपने जीवन साथी को प्यार करता है, अपने प्रेम के इजहार के लिए 14 फरवरी के इस
मुकदृदस दिन का बडी बेसब्री से इंतजार करता है।
वेलेन्टाइन डे क्यों मनाया जाता है
इसके पीछे कई मान्यताएं है। सर्वस्वीकृत मत और तथ्य ये
ऐसी
मान्यता है की प्रारंभ में रोम के निवासी इस दिन घरों में साफ सफाई किया करत थे और
एक दूसरों को प्रेम का संदेश देते थे। यह संदेश हस्त लिखित होता था। बाद में यह
दिवस प्रेम के आईकन के रूप में सर्व स्वीकृत होता गया। 1797 ईस्वी ब्रिटेन में
पहले पहल छपे हुये संदेश भेजने की परंपरा शुरू हुई बाद में ग्रिटिंग (चित्रकारी के साथ) के रूप में प्रेम के संदेश को प्रेषित किया जाने लगा। वह हस्तलिखित पत्र
आज इलेक्ट्रानिक कार्ड का रूप ले चुका है। बडी बडी कम्पनियाँ इस मौके पर तैयारी
करती है और युवाओं को लुभाने का प्रयास करती है। अब होटल, बाजार, बाग बगीचे सजा ये जाते है, गिफ्ट आईटमों में छूट की पेशकश की जाती है। पूरा बाज़ार मानो सज धज कर
तैयार हो जाता है।
विवाह
दिवस के रूप में मनाया जाना:- वैसे प्रेम और प्रेम विवाह किसी मूहूर्त के मोहताज नही होते है। बहुत कम
लोग जानते है कि इस दिन को विवाह दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। वेलेन्टाईन
दिवस के दिन विवाह किये जाने का क्रेज जोरों पर है प्रेमी जोडे विवाह करने हेतु इस
दिवस को चुनते है। इसलिए इसे विवाह दिवस के रूप में भी जाना जाने लगा है। 14 फरवरी
को ऐसी कई हाई प्रोफाईल शादियाँ सुर्खियों में रहती है जो कुण्डली मिलान, विवाह मुहूर्त के बिना सात फेरे लेकर अपनी शादी को यादगार बनाना चाहते है।
वेलेन्टाईन
को लेकर विवाद:- आज
से 1700 सौ साल पहले जिस प्रकार नफरत का जहर फैलाने वाले कट्टरवादी और तानाशाही
विचारधारा के लोग प्रेम के परवानो पर कहर ढाते थे। आज भी उस क्लॉ्डियस की संताने
इन प्रेमियों पर जुल्म ढाने से बाज नही आजे है। लेकिन उनका तरिका बदल गया है।
भारत में कुछ कट्टरपंथियों के द्वारा इस दिवस का विरोध किया जाता है। वे इस दिवस
को मनाने से मना करने के कई हास्यास्पद तर्क देते है जैसे इस प्रेम (वेलेन्टाईन) दिवस को मनाने से भारतीय संस्कृति
नष्ट हो जायेगी, यह विदेशी संस्कृति का हमला है, प्रेम करना गलत है आदि आदि। कुछ लोग इस दिवस का भारत में प्रभाव खत्म
करने की गरज से बजुर्ग दिवस, हिन्दू संस्कृति विकृत दिवस, पूजन दिवस, मातृ-पितृ दिवस मनाने तक की घोषणा
करते है। वे अपने आप को भारतीय संस्कृति का ठेकेदार समझते है। उनकी नजर में
भारतीय संस्कृति इतनी कमजोर है की वेलेन्टाईन दिवस मनाने से नष्ट हो जायेगी, न की और मजबूत होकर फलेगी फूलेगी।
वेलेन्टाईन
डे के विरोध का वास्तविक मकसद क्या है यदि गौर से देखे तो जो कट्टरपंथी लोग इस दिवस का
विरोध करते है, उनका संस्कृति और धर्म से कोई लेना
देना नही है वे जानते है कि उन्हे लोगो का समर्थन नही है वे इस तथ्य से तिल मिला
जाते है और किसी न किसी प्रकार से चर्चा में बने रहना चाहते है, शायद ये एक सबसे आसान रास्ता है मीडिया में बने रहने का। दूसरा मकसद यह
है कि वह क्लोडियस की तरह जनता की आँखो में घूल झोक कर, नफरत और घृणा का बीज बो कर लंबे समय तक सत्ता में काबिज रहना चाहते हो।
लेकिन सुखद है कि भारत का युवा इन सब से दूर प्रेम के इस दिवस को बडे ही तहजीब से
मनाता आ रहा है। सात समुन्दर पार से आये इस प्रेम के त्योहार को यहां के युवा ही
नही बुजुर्ग भी बडे शान से मनाते है। भारत में जाति, धर्म, ऊंच-नीच के भेद को मिटा कर वास्तव में वासुदेव
कुटुम्बकम का आगाज करने की पहल की जा चुकी है। यही बात इन नफरत के झंण्डाबरदारों
को खटकती है। बडी ही दुख की बात है जब हमारे देश की दीवाली अमेरिका के वाइट हाउस
में मनाई जाती है तो हम गौरांवित होते है और जब
पश्चिमी देशेा का कोई त्योहार हमारे देश में मनाया जाता है तो हम हाय तौबा मचाते
है। हमें इस दोगली नीति से बचना होगा। हमारे संविधान
में लिखा है कि भारत एक स्वतंत्र और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। यहाँ सबको अपनी तरह
जीवन जीने अधिकार है। यह अधिकार छीनने का हक किसी को भी नही है स्वयं माता पिता
को भी नही।
Publish on 8/2/2015 Nav Bharat